बलौदाबाजार में जो सरकारी संपत्ति का नुकसान हुआ, उसकी भारपायी क्या उपद्रवियों से होगी? क्या हैं नियम, नौकरी में अयोग्यता से लेकर बर्खास्तगी तक का है प्रावधान
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रायपुर 11 जून 2024। बलौदाबाजार में आक्रोश की चिंगारी में करोड़ों रुपये की सरकारी संपत्ति जलकर खाक हो गयी। वहीं करोड़ों की निजी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा है। छत्तीसगढ़ के इतिहास में इस तरह की घटनाओं की परंपरा नहीं है। लिहाजा ऐसी घटनाओं को लेकर कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं। इस घटना में करोड़ों रूपये की बिल्डिंग जलकर खाक हो गयी। कलेक्टरेट परिसर के जिस बिल्डिंग को फूंक दिया गया, उसका नुकसान भी 15-20 करोड़ से ज्यादा का होगा।
वहीं गाड़ियां व अन्य समान जो बरबाद हुए, वो भी करोड़ों में हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या प्रदर्शनकारी जब ऐसे सरकारी संपत्तियों का नुकसान करते हैं, तो फिर क्या होता है? क्या नुकसान की भारपायी आरोपियों से करायी जाती है? नुकसान करने वाले अगर आरोपी की पहचान हो जाती है तो फिर उनके साथ क्या होता है? बलौदाबाजार की घटना में जिस तरह की शासकीय संपत्ति की बरबादी हुई है, उसके बाद सवाल उठ रहा है कि क्या उपद्रवियों से भी वसूली होगी, क्या नियम और प्रवाधानों के अनुरूप ही उनपर एक्शन होगा।
इसका जवाब यही है कि अगर सरकार चाहे, तो सब कुछ कर सकती है। संबंधितों से ही शासकीय संपत्ति की नुकसान की भरपायी करायी जा सकती है। अगर सरकार चाहे तो आरोपियों को आजीवन शासकीय लाभ लेने से वंचित किया जा सकता है। उन्हें शासकीय नौकरी से भी बेदखल या नौकरी के लिए अयोग्य कराया जा सकता है। आईये जानते हैं सरकारी संपत्ति के नुकसान को लेकर संविधान में क्या है प्रावधान …
सार्वजनिक संपत्ति की परिभाषा: सार्वजनिक संपत्ति” का अर्थ है कोई भी संपत्ति, चाहे वह अचल हो या चल (किसी भी मशीनरी सहित) जो स्वामित्व में हो, या उसके कब्जे में हो या उसके नियंत्रण में हो।
- केंद्र सरकार
- राज्य सरकार
- कोई भी स्थानीय प्राधिकरण
- केंद्रीय, अनंतिम या राज्य अधिनियम द्वारा स्थापित या उसके अधीन कोई भी निगम
कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 617 में परिभाषित कोई भी कंपनी। ये ऐसी कंपनियां हैं जो सरकार के पास होती हैं जिसमें केंद्र या राज्य सरकार के पास 51 प्रतिशत से कम चुकता शेयर पूंजी नहीं होती है। आईटी में एक कंपनी भी शामिल है जो सरकारी कंपनी की सहायक कंपनी है।
सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली शरारतें:
जो कोई भी प्रकृति की सार्वजनिक संपत्ति के संबंध में कोई कार्य करके शरारत करता है, उसे पांच साल तक की कैद और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
आग या विस्फोटक पदार्थ से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली शरारत: जो कोई भी आग या विस्फोटक पदार्थ द्वारा अपराध करता है, उसे कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जुर्माने के साथ इसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। अधिनियम में यह भी कहा गया है कि उपरोक्त अपराधों के आरोपी या दोषी व्यक्ति को, यदि हिरासत में है, तो उसे जमानत पर या अपने स्वयं के मुचलके पर रिहा नहीं किया जाएगा, जब तक कि अभियोजन पक्ष को ऐसी रिहाई के लिए आवेदन का विरोध करने का अवसर नहीं दिया गया हो।
धारा 427 भारतीय दंड संहिता (आईपीसी): जो कोई भी शरारत करता है और 50 रुपये या उससे अधिक की राशि को नुकसान पहुंचाता है, उसे दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।
धारा 425 आईपीसी: जो कोई इस आशय से, या यह जानते हुए कि वह जनता या किसी व्यक्ति को गलत तरीके से नुकसान पहुंचा सकता है, किसी भी संपत्ति को नष्ट करता है, या किसी भी संपत्ति में या इस तरह के किसी भी बदलाव का कारण बनता है। इसकी स्थिति के रूप में इसके मूल्य या उपयोगिता को नष्ट या कम कर देता है, या इसे हानिकारक रूप से प्रभावित करता है, “शरारत” करता है।
इसके अलावा और किसी भी तरह के बवाल में शामिल होने पर आईपीसी की धारा 147 और 148 के तहत केस दर्ज हो सकती है। भारतीय डंड संहिता 1860 की धारा 148 में घातक आयुध से लैस होकर दंगा करना परिभाषित किया गया है। आपीसी की धारा 148 के अनुसार कोई घातक आयुध का उपयोग करके दंगा करने पर तीन साल की सजा हो लकती है। या फिर आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है। या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
हिंसक प्रदर्शन में शामिल युवाओं का क्या होगा भविष्य?
हिंसा कभी भी अनुकूल परिणाम नहीं देती है। इसका नतीजा हमेशा गलत ही होता है। वैसे तो भारत में सरकारी सेवा के मामले में पुलिस केस दर्ज होने को लेकर कोई एक कानून नहीं है। लेकिन अलग अलग राज्यों में सेवा नियम बने हुए हैं। जिसके तहत कहा जा रहा है कि जो लोग विरोध के नाम पर उपद्रव कर रहे हैं, वे सेना तो क्या, किसी भी सरकारी नौकरी में जाने के लायक नहीं रहेंगे। कोई भी पुलिस केस दर्ज होने के बाद भविष्य चौपट हो जाता है। सेना में फिजिकल, लिखित परीक्षा में पास कर सिलेक्ट होने के बाद जब स्थानीय थाने से पुलिस वेरिफिकेशन कराया जाता है, तो चयन अस्वीकृत कर डिस्कवालिफाई कर दिया जाता है। इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति या अभ्यर्थी छोटे-मोटे अपराध में शामिल हुआ हो और उससे सीआरपीसी की धारा 107 और 151 के तहत बॉन्ड भरवाकर वादा लिया जाता है कि वो आगे कभी अपराध में शामिल नहीं होगा।
सार्वजनिक संपत्तियों के सरक्षण के लिये कानून:
- लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984:
- इस अधिनियम के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक संपत्ति को दुर्भावनापूर्ण कृत्य द्वारा नुकसान पहुँचाता है तो उसे पाँच साल तक की जेल अथवा जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है।
- इस अधिनियम के अनुसार लोक संपत्तियों में निम्नलिखित को शामिल किया गया है-
- कोई ऐसा भवन या संपत्ति जिसका प्रयोग जल, प्रकाश, शक्ति या उर्जा के उत्पादन और वितरण किया जाता है।
- तेल संबंधी प्रतिष्ठान
- खान या कारखाना
- सीवेज संबंधी कार्यस्थल
- लोक परिवहन या दूर-संचार का कोई साधन या इस संबंध में उपयोग किया जाने वाला कोई भवन, प्रतिष्ठान और संपत्ति।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने पहले कई अवसरों पर इस कानून को अपर्याप्त बताया है और दिशा-निर्देशों के माध्यम से अंतराल को भरने का प्रयास किया है।
- वर्ष 2007 में सार्वजनिक और निजी संपत्तियों के बढे पैमाने पर विनाश के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए पूर्व न्यायाधीश के.टी. थॉमस और वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरीमन की अध्यक्षता में दो समितियों का गठन किया ताकि कानून में बदलाव के लिये सुझाव प्राप्त किये जा सकें।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दिशा-निर्देश:
- वर्ष 2009 में ‘डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज़ Vs स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश एंड अदर्स (Destruction of Public & Private Properties v State of AP and Others) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों समितियों की सिफारिशों के आधार पर निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किये-
- के.टी. थॉमस समिति ने सार्वजनिक संपत्ति के विनाश से जुड़े मामलों में आरोप सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी की स्थिति को बदलने की सिफारिश की।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सामान्यतः अभियोजन को यह साबित करना होता है कि किसी संगठन द्वारा की गई प्रत्यक्ष कार्रवाई में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचा है और आरोपी ने भी ऐसी प्रत्यक्ष कार्रवाई में भाग लिया। परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक संपत्ति से जुड़े मामलों में कहा कि आरोपी को ही स्वंय को बेगुनाह साबित करने की ज़िम्मेदारी दी जा सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायालय को यह अनुमान लगाने का अधिकार देने के लिये कानून में संशोधन किया जाना चाहिये कि अभियुक्त सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने का दोषी है।
- सामान्यतः कानून यह मानता है कि अभियुक्त तब तक निर्दोष है जब तक कि अभियोजन पक्ष इसे साबित नहीं करता।
- नरीमन समिति की सिफारशें सार्वजनिक संपत्ति के विनाश की क्षतिपूर्ति से संबंधित थीं।
- सिफारिशों को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि प्रदर्शनकारियों से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का आरोप तय करते हुए संपत्ति में आई विकृति में सुधार करने के लिये क्षतिपूर्ति शुल्क लिया जाएगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को भी ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेने के दिशा-निर्देश जारी किये तथा सार्वजनिक संपत्ति के विनाश के कारणों को जानने तथा क्षतिपूर्ति की जाँच के लिये एक तंत्र की स्थापना करने के लिये कहा।
सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का प्रभाव:
- सार्वजनिक संपत्ति के विनाश से जुड़े कानून की तरह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों का भी सीमित प्रभाव दिखा है क्योंकि प्रदर्शनकारियों की पहचान करना अभी भी मुश्किल है, विशेषतः उन मामलों में जब किसी नेता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से विरोध-प्रदर्शन का आह्वान नहीं किया जाता है।
- वर्ष 2015 में पाटीदार आंदोलन के बाद हार्दिक पटेल पर हिंसा भड़काने के लिये राजद्रोह का आरोप लगाया गया था। सर्वोच्च न्यायालय में यह तर्क दिया गया कि चूँकि न्यायालय के पास हिंसा भड़काने से संबंधित कोई सबूत नहीं है इसलिये उसे संपत्ति के नुकसान के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
- वर्ष 2017 में एक याचिकाकर्त्ता ने दावा किया था कि उसे एक निरंतर आंदोलन के कारण सड़क पर 12 घंटे से अधिक समय बिताने के लिये मजबूर किया गया था। कोशी जैकब बनाम भारत संघ नामक इस मामले के फैसले में न्यायालय ने पुनः कहा कि कानून को अद्यतन करने की आवश्यकता है परंतु याचिकाकर्त्ता को कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया क्योंकि विरोध-प्रदर्शन करने वाले न्यायालय के सामने उपस्थित नहीं थे।